अपरिपक्व कविता

अपरिपक्व कविता-

                         
तुम्हारा प्रेम
उस बादल की तरह है,
जो समुद्र के ऊपर बरसता है
या फिर ,
हरियाली से ओत-प्रोत मैदान में,

बात तो तब हो 
जब वह बरसे 
किसी प्यासे रेगिस्तान में ,

सुनो !

मेरा जीवन ऐसा ही रेगिस्तान है ।।

     --- बलजीत गढवाल 'भारती'
२१/०८/२०२२

   17
6 Comments

Pankaj Pandey

22-Aug-2022 03:03 PM

Nice

Reply

shweta soni

22-Aug-2022 10:39 AM

बेहतरीन रचना

Reply

Seema Priyadarshini sahay

22-Aug-2022 08:38 AM

बहुत सुंदर👌👌

Reply